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श्री कृष्ण बाल लीला -24-Aug-2022

कविता -कृष्ण बाल लीला   

अब आन बसौ मोहन मन में, तेरी सूरत मन को भावत है।  बचपन में तू जीवन की सबै, खूब लीला करत दिखावत है।| 
ठुमकत चलत बजै पैजनिया, तन मन में प्रीति जगावत है।  किलकारी मार हसत आगन,जग भर में सबै हसावत है।|  

बचपन का तेरा रूप सलोना, चंचल चित्त को ठहरावत है।  
नैन कमलवत तिरछी भौंहे, मेरौ चित् को चोर बनावत है।|
मोर मुकुट सिर सोहत जैसे, इंद्रधनुष रंग बनावत है।  
श्यामल वर्ण मनोहर तन, घनश्याम कै याद दिलावत है।| 

अधरों के बीच बजाय मुरली, बिन बादल मोर नचावत है।  लीला भी करते गजब किसन, मुख में ही जग दिखलावत है संयोग वियोग कै खेल रचाके,सुख-दुख कैनीति सिखावत है हठ में भी तेरे प्रीति सधै सब,नभ चांद को भूमि बुलावत है।| 

ग्वालन के संग गाय चरइया, मिल माखन खूब चुरावत है।  
गोपियन के संग रास रसैया, मधुरस  प्रेम  बरसावत  है।| 
बिप्र सुदामा को मीत बनाकर,सुख दुःख सरस निभावत है।  
दीनन कै तू दान देवइया, करुणानिधि नाथ  कहावत है। |

तुम लेकर जन्म काल कोठरी में, देवकी वासुदेव सुहावत है।  
भादों माह गहन अधियरिया, यमुना से चरण छुआवत है।|
दो दो मइया पाय कन्हैया ,दो मां का महत्व समझावत है।  
निरखि निरखि तेरा लीला प्रभु,सबै देव फूल बरसावत है।|

रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर 

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16 Comments

Mithi . S

26-Aug-2022 03:03 PM

Nice

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Pankaj Pandey

25-Aug-2022 02:28 PM

Nice

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बहुत बहुत सुन्दर सृजन

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